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मार्च, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अगर तुम न होतीं (कविता)

लिखते लिखते बस यूँ ही खयाल आया.......... अगर ये लेखनी न होती तो मेरा क्या होता..............???? आजकल सुबह भी इसी से शुरू और रात भी इसी पे ख़त्म होती है सुबह से शाम बस ये लेखनी ही मेरा पहला प्यार होती है। ये न होती तो इन दर्दों पर दवा कौन लगाता, मेरे मन का यूँ आप सब तक कौन पहुँचाता ??? ईश्वर की अनुकम्पा कहूँ इसे या आप सबका आशीष, आजकल ये मेरी मित्र सी हो गई है एकदम ख़ास और अज़ीज़। आजकल तो ये रोज शब्द रुपी नए रत्न निकलती है, कागज़ कलम लेकर बैठूँ मैं और बस खुद ही सब लिख डालती है। जो आजकल अनुभव कर रही हूँ शायद इसी को सुकून कहते हैं, न जाने कुछ लोग मनोभाव व्यक्त किये बिना कैसे रहते हैं। अब कोई दुःख दर्द ज्यादा समय टिकता नहीं , कागज़ कलम साथ हो तो आजकल आसपास कोई दिखता नहीं। कुछ लोग हैं भी यहाँ जो लेखन में अड़ंगा लगाते हैं, पर लिखती फिर भी जाती हूँ तो मेरे समक्ष ज्यादा नहीं टिक पाते हैं। कुछ को मेरा ये सुकून बिल्कुल रास नहीं आता है पर, जले तो जले दुनिया इसमें मेरा क्या जाता है??? :-))) मेरे लिए तो यूँ लिखना अब जीवन की नई राह है, आप बस मेरा मार्गदर्शन करें क्योंकि  अच्छा

मेरे दादाजी (कविता)

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मेरे दादाजी रौबीले और खुशमिजाज़ व्यक्तित्व के धनी थे। बागवानी के खूब शौकीन।ऐसा कोई पेड़ पौधा नहीं होगा जिसे उनके हाथों ने न सींचा हो।  उनके साथ बीता वक़्त बहुत ही सुन्दर रहा।  हम भाई बहनों में मुझ पर उनका विशेष प्रेम रहा। उनके रहते मुझे सुबह जल्दी उठने के लिए कभी अलार्म की जरूरत महसूस नहीं हुई।मुझे किसी भी समय उठना हो बस उन्हें बताने की देर रहती और ठीक उसी वक़्त उनकी आवाज सुबह मेरे कानों तक पहुँच ही जाया करती थी। उनका आवाज रुपी अलार्म कभी गलत नहीं हुआ। उनके साथ की यादें तो बहुत हैं, सभी शामिल न कर कर पाई मगर कुछ बातों के जिक्र के साथ, मेरे मन से निकले ये मोती आज इस कविता रूप में पिरोकर उन्हें सादर नमन के साथ समर्पित कर रही  हूँ ।  भूला बिसरा आज सब याद आ गया, वो आपके साथ पेड़ से जाम तोड़ने वाला  मुझे आज ख्वाब आ गया।  ख्वाब में आप, मैं सभी थे  पर वो जाम आम के पेड़ नहीं थे।   आप घंटों साफ़ करते थे जो मैदान, उसकी जगह बने थे अब कुछ मकान।  न केले थे न जाम न आम, न वो राखी, सुरजना, केरी के फूल  क्या हम उन्हें पानी देना गए होंगे भूल? कैसे भूलूँ मैं, प्यार से आपका बार-बार मुझे आवाज़ लगाना

दो शब्द....., गुरु द्रोणाचार्य

गुरु द्रोणाचार्य  - वे जिनके ब्लॉग, मैंने ब्लॉग बनाते हुए visit किये और जाना कि ब्लॉग कैसे बनाया जाये,कैसे हिंदी में लिखा जाए और क्या क्या ब्लॉग पर लिखा जा सकता है। आप सभी की जानकारी में न होते हुए भी सबके ब्लॉग से कुछ न कुछ सीख लिया है।इसीलिए आप हुए द्रोणाचार्य और मैं एकलव्य और गुरुदक्षिणा के रूप में ये दो ब्लॉग बनाये हैं।   http://lekhaniblogdj.blogspot.in/ http://lekhaniblog.blogspot.in/ अब गुरुदक्षिणा आपकी रूचि की है या नहीं, ये तो आप पढ़कर ही बता पाएंगे।अपना अमूल्य समय देकर मार्गदर्शन अवश्य कीजियेगा। अब तक आपसे जो ज्ञान मिला उसके लिए आपको सधन्यवाद और आगे अब आप मुझे प्रत्यक्ष मार्गदर्शन देंगे। इस आशा में अग्रिम धन्यवाद। धन्यवाद द्रोणाचार्य प्रतिभा सक्सेना जी  http://lambikavitayen5.blogspot.in/   आपके ब्लॉग  लालित्यम  का कुछ अंश पढ़ा और अहसास हो गया कि आपकी तरह लिखने के लिए मुझे सात जन्म लेने होंगे।  न जाने कब मैं आपकी तरह भावपूर्ण और बांध कर रखने वाले साहित्य की रचना कर पाऊँगी। शायद कईं जन्म लग जाएँ। आपको पढ़ पाना मेरा सौभाग्य है।आपके लेखन में सब कुछ  होता है। विषय का ज्ञान,

दो शब्द.....आप सब को धन्यवाद

आप सब को धन्यवाद  ईश्वर - मुझे मनुष्य जन्म देने के लिए। अन्यथा न ये मस्तिष्क होता, न मन और न विचार। और ये सब न होते तो मेरी लेखनी भी न होती।  मेरे माता पिता -मुझे जन्म देकर अच्छा शिक्षण अच्छे संस्कार देने,मेरी सुसंस्कृत वातावरण में परवरिश करने, मुझे अपनी स्वतंत्र सोच बनाने और उसे बनाये रखने की प्रेरणा देने,साथ ही उसका समर्थन करने के लिए मैं आजीवन उनकी ऋणी रहूँगी।   मेरे गुरुजन - विशेषकर आदरणीया श्रीमति सुनीता काले मेम, आदरणीय श्री तिवारी सर, आदरणीया श्रीमति दिव्यलता शर्मा मेम, आदरणीया श्रीमति ब्रह्मे  मेम, आदरणीया श्रीमति  ममताअग्रवाल मेम, आदरणीया  श्रीमति   आशा श्रीवास्तव मेम,आदरणीया  श्रीमति  रीना मेम और महर्षि वेद व्यास विद्या मंदिर के सभी माननीय गुरुजन। आप सही मायने में मेरे सच्चे गुरु हैं, जिन्होंने समय-समय पर मुझे सही ज्ञान देने के साथ-साथ मेरी प्रतिभा को तराशने,मुझे प्रोत्साहित करने का भी कार्य किया है।  मेरे सभी मित्र एवं रिश्तेदार - जो ब्लॉग बनाने के पहले भी और अब भी मेरी कृतियाँ मेरे कहने पर झेलते हैं और प्रतिक्रियाएं भी देते रहते हैं। तहेदिल से आप सबका बहुत बहु

दो शब्द.....ब्लॉग जगत के महानुभावों से ,

ब्लॉग जगत के महानुभावों को मेरा सादर नमन , मैं dj (दिव्या जोशी) अपने ब्लॉग्स  के माध्यम से आपके सन्मुख कुछ रचनाएँ प्रदर्शित कर चुकी हूँ और कुछ लिखने का प्रयास जारी है। ब्लॉग जगत में कदम रखने का अनुभव मेरे लिए एकदम नया है।  पर जब से ब्लॉगिंग शुरू की है, सच मानिये स्वयं को नए जोश,उमंग और स्फूर्ति से भरा महसूस करने लगी हूँ। साहित्य का कोई विशेष ज्ञान नहीं रखती मैं, मगर कागज़ कलम से नाता बहुत पुराना है। लेखन से आत्मिक जुड़ाव है। लेखन ने  हमेशा मुझे परिपक्व, और परिपक्व बनाने का कार्य किया है। बाल्य काल (कक्षा -7) में पहली कविता लिखी थी। उसके बाद लिखे कुछ लेख और कविताएँ पुरस्कृत भी  हुए। विद्यालय में अनेकों बार संचालन लिखने व करने का सौभाग्य मिला। इस बीच कभी किसी के जन्मदिवस ,प्रमोशन इत्यादि पर लिखना जारी रहा। बाद में लेखन छूट सा गया,लेकिन पढ़ना बदस्तूर जारी रहा। परन्तु शादी के पश्चात तो लेखन-वाचन लगभग बंद सा हो गया था। पर्सनल डायरी के अलावा इतने दिनों कुछ भी रचनात्मक लिख नहीं पाई। कारणों का जिक्र यहाँ आवश्यक नहीं।                                                                            

माँ ने मुझे सँवारा है।

माँ के लिए जितना लिखो कम ही है।तो आज फिर माँ को याद कर रही हूँ। मेरे साथ इन यादों में आप भी शामिल हो जाइये। माँ ने मुझे सँवारा है, माँ का गुलिस्ताँ प्यारा है, लड़खड़ाते हर कदम पर  मिला जिसका सहारा है, माँ ही मेरी वो है,  जिसने हर पल, निश्छल प्रेम से मुझे दुलारा है।  मै रोई तो हँसाया मुझे, निराश हुई तो प्रोत्साहन दिया, रूठी तो मनाया  भी,  मेरे गुस्से पर, मुझे प्यार से समझाया भी, जिसने साथ नहीं छोड़ा कभी, चली मैं कभी इस डगर तो कभी उस गली,  मेरे साथ चाहे न गई हो वो  हर कहीं, पर उसकी ममता हमेशा मेरे साथ ही रही, संग संग रही सदा मेरे , माँ नहीं एक मित्र जैसे, जिसने हर पल मुझे सुना,  अपने जीवन का हर ताना बाना बस मेरे इर्द गिर्द बुना, उस माँ ने ही मुझे सँवारा है , माँ का गुलिस्ताँ प्यारा है, लड़खड़ाते हर कदम पर, मिला जिसका सहारा है, माँ ही मेरी वो है जिसने हर पल, निश्छल प्रेम से मुझे दुलारा है।  (स्वलिखित)   dj    कॉपीराईट  © 1999 – 2015 Google इस ब्लॉग के अंतर्गत लिखित/प्रकाशित सभी सामग्रियों के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं। किसी भी ले

मेरी माँ.... प्यारी माँ....... मम्मा

आज पढ़िए माँ के लिए लिखी मेरी स्वरचित कविता  कच्ची मिट्टी थी मैं तो बस, मुझे आकार तो मेरी माँ ने दिया। अनगढ़, मूर्ख, अज्ञानी थी मैं, मुझे ज्ञान से साकार तो मेरी माँ ने किया। दर्द किसी ने भी दिया हो मुझे, उन पर आँसू तो माँ ने बहाया। सीने में दफ़न हर इक दर्द पर, मलहम तो बस माँ ने लगाया। अनाज उगाया बेशक किसी और ने, पर खाना तो मुझे माँ ने खिलाया। जब सोते थे सब चैन से और में जागती रही, मुझे थपकी देकर तो सिर्फ माँ ने सुलाया। साथ छोड़ दिया जब सब ने मेरा, मेरी और हाथ तो माँ ने बढ़ाया। गलत कहती रही पूरी दुनिया जब मुझे, बड़ी शिद्दत से मुझे सही तो माँ ने ठहराया। डरकर छुपने की जगह जब भी तलाशी मैंने, मेरे हाथ में तो बस माँ का ही आँचल आया।  इसीलिए शायद ईश्वर के आगे आँखे बंद कर जब भी खड़ी हुई मैं, मेरी नज़रों के सामने तो बस  मेरी माँ का ही चेहरा   आया।  मेरी दोनों माँ मम्मी और मम्मा (बड़ी मम्मी ) को दिल से समर्पित (स्वरचित)   dj    कॉपीराईट  © 1999 – 2015 Google इस ब्लॉग के अंतर्गत लिखित/प्रकाशित सभी सामग्रियों के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं। किसी भी लेख/कविता को कहीं और प्रयोग करने

ईश्वर

' मन के मोती'  में आज फिर से डायरी से ही कुछ शब्द  27 feb 2012   at 3:00pm  monday सच  है, भगवान कभी हमारी ज़िंदगी से अपनी अहमियत कम नहीं होने देते हैं।  हम जीवन के हर मुश्किल मोड पर आकर उनसे कहते हैं कि   "बस ये हमारी  सबसे बड़ी और आखिरी wish है।  please भगवान एक बार इसे पूरा कर दीजिए।  i promice इसके बाद मैं आपसे कुछ नहीं माँगूंगा /माँगूंगी ।" मगर ये कहते वक़्त  हम शायद ये भूल जाते हैं कि आख़िर वो भगवान हैं। सर्वशक्तिमान हैं। उनके द्वारा तो पहले ही सबकुछ सुनिश्चित किया जा चुका है। कब,किसे ,कहाँ,कैसे ?उनकी पल -पल ज़रूरत  हमें  होगी, ये वो पहले से जानते हैं और इसीलिए शायद हमसे इस तरह के शब्द बुलवाते हैं। लेकिन जब फिर से हमारे समक्ष वो घड़ी आ जाती  है कि हमे उनसे अगली चीज़ माँगनी  होती है , हमें उस सर्वशक्तिमान की महत्ता याद आती है।             अनुभव ही जीवन में सबकुछ है।  अनुभव लेकर सीखी हुई बातें ताउम्र साथ देती हैं। आगे गलतियाँ करने से रोकती हैं और  कुछ भी निश्चित करने से पहले हमें सौ बार सोचने को मजबूर करतीं हैं। (स्वलिखित)   dj    कॉपीराईट  © 1999 – 2015 Goog

ये लम्हें...ये पल....

' मन के मोती'  में आज  फिर मेरी डायरी  का एक पेज  28  feb 2012  at 4:00pm  tuesday  जीवन में कुछ पल  अविस्मरणीय  और  अति सुन्दर होते हैं। जिन्हें  याद रखने की  ज़रूरत  नहीं पड़ती।  वो हमारे स्मृतिपटल पर सदैव विराजमान रहते हैं। बिल्कुल  किसी अच्छी फ़िल्म  की पटकथा  की भांति।                         अगर  इन पलों  में, अपने साथ होते हैं , तो  इन पलों की महत्ता  भी बढ़ जाती  है।  खुशियाँ  दुगुनी  हो  जातीं  हैं। जीवन के ख़ूबसूरत होने का  अहसास होता है। और हमसे जुड़े विशेष दिन में , अगर कोई  हमें 'ख़ास'   होने का अहसास कराए  तो उन पलों की ख़ूबसूरती में  चार -चाँद लग जाते हैं।  जब हमारे अपने हमारे  लिए सोचते हैं , हमें 'विशेष'  होने का अनुभव कराते हैं ,हमारी ख़ुशी में खुश होकर शामिल  होते हैं, तो जीवन पूर्ण सा  लगता  है। तब सच  में लगता है कि ये जीवन ईश्वर का खूबसूरत वरदान है और हम इस दुनिया में सबसे भाग्यशाली इंसान। जब कोई बिना लाग -लपेट,बिना दिखावे  के हमें  दिल  से चाहता है, हमारे भले के लिए दिल से सोचता है, तो सच में बहुत ही अच्छी अनुभूति होती है। और क्यूँ न हो,

ये रिश्तों की पहेली

' मन के मोती'  में आज  मेरी डायरी  के  पन्नों में से एक..........  29 feb 2012   at 2:00pm  wednesday  ये एक अद्भुत  और बहुत ही सुन्दर, सुखद अनुभूति है।  सच में, क्या दुनिया में ऐसा होता है ? लेकिन अनुभव करने के  पश्चात ऐसे किसी प्रश्न की आवश्यकता ही नहीं रह जाती। हाँ  ये होता है।  दो अलग अलग परिवारों संस्कारों में पले बढ़े लोगों में कईं वैचारिक , सांप्रदायिक ,पारिवारिक  मतभेदों के बावज़ूद , ऐसा लगाव, ऐसा मोह एक दूसरे के प्रति  हो जाना , निश्चित ही आश्चर्यजनक है। परन्तु असंभव नहीं है। उनके बीच रिश्ता कोई भी वो मायने नहीं रखता।  मायने रखती है सिर्फ और सिर्फ मानवीय संवेदनाएँ , आत्मा का जुड़ाव। जहाँ एक दूसरे के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव होता है, वहाँ  व्यक्ति के चेहरे के हाव-भाव , उसकी भाव-भंगिमाएँ, उसकी हर एक प्रतिक्रिया,उसके अंदर चल रहे विचारों, बातों और अनुभूतियों से हमें अवगत करा देती हैं। जबकि इन सब में शब्द बिल्कुल नगण्य होते हैं। बिना शब्दों के किसी के मन की बातों  को जान लेना, उसकी भावनाओं को बिना बताए ही समझ लेना और उन भावनाओं में शामिल हो जाना। उसकी ख़ुशी में खुश

चले जा रहे हैं...........

आज पढ़ें  मेरी लेखनी से लिखी जीवन पर आधारित एक और कविता                          चले जा रहे हैं।  एक राह मिली है मगर, न मंज़िल  का पता न जाने कैसी है डगर।  चले जा रहे हैं .……  बस चले जा रहे हैं .…… रोज होती है नई सुबह, रोज नई शाम , नई कोई ग़लती प्रतिदिन और नया समाधान।  न जाने किस पल का इन्तज़ार किये जा रहे हैं .…… चले जा रहे हैं .……  बस चले जा रहे हैं .…… रात का पता न दिन का होश है, कितना भारी कम्बख़्त इस जीवन का बोझ है।  पर इस बोझ को भी ख़ुशी से ढोये जा रहे हैं .……     चले जा रहे हैं .……  बस चले जा रहे हैं .…… न तपती धूप का दुःख, न चाँदनी रात का सुख, न सुरों की झंकार न प्रेम की फ़ुहार।  बेनाम सी एक ज़िंदगी जिए जा रहे हैं .…… चले जा रहे हैं .……  बस चले जा रहे हैं .…… सीखों का पिटारा है , हर तरफ सलाहों का नज़ारा है।  खुश रहकर जीने की नसीहतें सुनकर, ग़म के घूँट पिए जा रहे हैं .…… चले जा रहे हैं .……  बस चले जा रहे हैं .…… आख़िर चलना  ही तो ज़िंदगी का नाम है, सुख-दुःख, धूप-छाँव, हँसी-उदासी कुछ भी हो बस चलते रहना....... कभी रुकना नहीं  …… कभी थकना नह