युवाम् (कविता )

'मन के मोती' में आज स्कूल टाइम की ही लिखी हुई एक कविता है जो एक संस्था के लिए लिखी थी नाम  शायद बहुत से लोगों  ने सुना हो  'युवाम् '। युवाम की स्थापना  देश  के युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु  निःशुल्क प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए की गई है। विद्यार्थी जीवन में हमारे लिए ये सिर्फ एक संस्था न होकर एक परिवार था और ये कविता 'युवाम् ' के स्थापना दिवस के अवसर पर लिखी थी.… युवाम के संस्थापक  आदरणीय 'दादा' (श्री पारस सकलेचा जी) को समर्पित-----

'युवाम् '

युवाम हमारी जान है ,
                  युवाम हमारी   शान है। 

राष्ट्र का अभिमान है, 
               युवाओं का  सम्मान है। 

'दादा ' की खोज युवाम एक संस्थान है ,
                जो  युवा प्रतिभाओं को निखारने का  एकमात्र  स्थान  है। 

युवाम से ही सुबह  है , 
               युवाम से ही शाम  है। 

युवाम  उगता   सूरज  है ,
               जिससे  प्रकाशित  सारा  जहान  है। 

युवाम  एक  चाँद  है ,
              जिसकी  रोशनी   सर्वत्र   दीप्तमान  है। 

युवाम  एक  सरिता  है ,
              जो  निरन्तर  प्रवाहमान  है। 

हमारे  पैरों  तले  युवाम  की ज़मीं ,
               और  सर  पर  युवाम  का   आसमान  है। 

युवाम हमारी जान है ,
                  युवाम हमारी   शान है। 

ऐसी अद्भुत संस्था और माननीय  'दादा ' को  हमारा  शत-शत  प्रणाम है। 
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