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धरती की पुकार

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धरती की चीत्कार सुनी क्या, क्या पुकारे धरती माँ, तूने अगर सहेजा होता,  फिर मैं ये सब करती ना।  हरे भरे थे मेरे गहने, हर एक तुमने छीन लिया,  वृक्ष विहीन हो जियूँ मैं ऐसे,  जैसे रघुवर बिन जिए सिया।  जब चाहा तब मेरा सीना , ऐसे तुमने चीर दिया , मैं तो अमृत देती तुझे,  तूने एक बून्द  नीर भी न दिया।   सोच के तो देख ए मानव ज़रा , पाला पोसा तुझे बड़ा किया, तूने अस्तित्व मिटाने को मेरा,  एक पल भी न इंतज़ार किया।  मैं न ऐसे प्रलय मचाती,  गर तूने समझा होता , पूजा भले न होता मुझे,  कुछ तो सम्मान दिया होता।  अन्न तूने खाया मेरा, उसका क़र्ज़ भी क्या तू चुकाएगा,  मुझमे ही पैदा हुआ और , इक दिन मुझमे ही मिल जायेगा।  कभी वन्दनीय कहलाती थी पर , आज तेरा वंदन मैं करती हूँ , मत कर ये अत्याचार , तुझसे बस यही निवेदन करती हूँ।   वरना भरे सजल नेत्रों से, मैं विवश यही अब करती हूँ,  तूने हरा है छीना मुझसे, तेरा लाल मैं खुद में भरती हूँ।  (स्वरचित)   dj    कॉपीराईट  © 1999 – 2015 Google इस ब्लॉग के अंतर्गत लिखित/प्रकाशित सभी सामग्रिय

इन्हें सलाम

आज चलते चलते एक विज्ञापन पर नज़र पड़ी। विज्ञापन था डांस वर्कशॉप का। पर वर्कशॉप कुछ अनोखी थी। इसकी दो विशेषताएँ एक तो ये निःशुल्क थी और वो भी सभी के लिए नहीं। सिर्फ उन चुनिंदा बच्चों के लिए जो बस्तियों /झुग्गी झोपड़ियों में निवासरत हैं और शासकीय विद्यालयों में शिक्षारत। देखकर ख़ुशी हुई सराहनीय प्रयास लगा। अच्छा लगा जानकर कि कुछ और भी लोग हैं जिनका इस और ध्यान है और वे इनके लिए कुछ करना चाहते हैं।  वैसे भी देखा जाये तो अधिकांश प्रतिभाएँ आजकल छोटे-छोटे गांव शहर और बस्तियों से ही निकलकर आ रही हैं। अधिकतर टैलेंट हंट्स के विजेता भी छोटे क्षेत्रों से ही आते हैं और  अपनी प्रतिभा सिद्ध करके दिखाते हैं। जरुरत है तो बस सही मार्गदर्शन के जरिये उन प्रतिभाओं को निखारने की। प्रतिभा सभी में छुपी होती है फर्क बस इतना है कि सम्पन्न  परिवारों के बच्चों के लिए तो कई माध्यम हैं जिनसे मार्गदर्शन  लेकर वे अपने मनचाहे मुकाम तक पहुँच जाते हैं। पर कई बच्चे प्रतिभा होते हुए भी धनाभाव के कारण उसे सबके समक्ष नहीं ला पाते। ये बहुत ख़ुशी की बात है कि कुछ लोग हैं जो  अपनी प्रतिभा का सही उपयोग इन गरीब प्रतिभावान बच्चों

"छोटू"

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वो रेत, और  सूखे पत्ते  रेत पर बनते बिगड़ते ,  कदमो के निशान , गवाह हैं  गुजरते हैं रोज़  वहां से कुछ  "इंसान"  सभी साफ़ स्वच्छ वस्त्रों में लिपटे  मलिन नहीं।  "मलिन" तो बस "वो"एक ही घूमता है, हर रोज उन्ही वस्त्रों में  वो "छोटू"…। बेचता है वहाँ, कुछ फूल कुछ गुब्बारे, राहगीर दिखते हैं जहाँ।  झट से दौड़ पड़ता है उनकी तरफ, आते हैं कईं बार दिलदार,  ले जाते हैं उस से, कुछ फूल कुछ गुब्बारे।  और दे जाते हैं उसे,  चन्द रुपए,  मिल जाता है उसे, एक वक़्त का खाना।   पूरा नहीं, आधा अधूरा ही सही।  बस यही जीवन है उसका, यही दिनचर्या।  सोचती हूँ कईं बार.……  ले आऊँ छोटू को , अपने साथ,  अपने घर.…  दूँ उसे पेट भर खाना, चाहती हूँ, न ढोये वो "मन"पर  उन "भारी" गुब्बारों और फूलों का बोझ  उसके नन्हे कंधे ढोये तो बस,  कुछ किताबों का बोझ।  मगर.………………… पूरी हो मेरी ये सोच  उसके पहले, दिखता है मुझे एक और  "छोटू"  ये क्या..............???????? एक और ?????? फिर एक और.…………  हर जगह "छोटू" ……? जह

मुस्कान

आज dj की लेखनी का मन है,आपको एक संस्मरण के दर्शन कराने का।  मैं इस बात से बिलकुल अनभिज्ञ हूँ कि ये संस्मरण मेरे पाठकों के लिए उपयोगी है या नहीं ? ये भी नहीं जानती कि किसी के व्यक्तिगत संस्मरण को पढ़ने में सभी पाठकों की रूचि है या नहीं ? मगर वो नन्हीं-सी बालिका और उसकी प्यारी सी मुस्कान,मुझे रोक ही नहीं पाई लिखने से.… ये संस्मरण आज भी मेरी अमूल्य यादों का एक अभिन्न हिस्सा है। मेरे दृष्टिपटल पर वैसा ही  विराजमान है और उसकी वो प्यारी मुस्कान भी.…। आज यहाँ लिखकर उस गुड़िया  की मुस्कान को आप सब के साथ बाँटने जा रही हूँ।                              एक बार मैं अपने पति महोदय के साथ देवास माता मंदिर दर्शन करने के उद्देश्य से पहुँची। मंदिर ऊँची टेकरी पर स्थित है। मंदिर की चढ़ाई शुरू होने से अंत तक फूल-मालाओं और  प्रसाद  के साथ-साथ मूर्तियों,तस्वीरों और अन्य वस्तुओं की दुकाने सजी हुईं थी। चढ़ाई खत्म होने के पश्चात् टेकरी पर  दो मुख्य मंदिर हैं जिनमे माँ तुलजा भवानी और चामुंडा माता की मूर्तियां विराजित हैं। इन्हें आम बोलचाल की भाषा में लोग क्रमशः बड़ी माता एवं छोटी माता कहते हैं। जिन पाठकों  ने

उफ्फ्.... ये मंज़िल!

जाने कहाँ और कैसे ? खो गई थी मैं। किसी जहाँ मे…… खुद को भूल गई थी शायद , चल पड़ी थी, किसी वीरान रस्ते पर , निर्जन था, कोई दिखा नहीं, कुछ मिला नहीं , न सुकून था , न सुख  न आँसु , न दुःख , उदासीन सा  ' सबकुछ ' चुभता रहता था  उस राह में  ' कुछ '  'वो' शायद जिसे  काँटा कहते हैं.…  'लोग' उस काँटे की टीस  उतनी न थी, जितनी उस राह  पर चलने की 'चुभन' थी।  न जाने कैसा मोड़ था 'वो'  जो चलते चलते  अचानक ही आ गया था, खुद को ढूंढ ही लिया मगर  मैंने, पा ली है, एक नई राह.………  चलती रहूंगी अब उसी पर, शायद अबकी बार.…  मिल ही जाए  मुझे 'वो'  मंजिल, जिसके लिए, कहीं खो गई थी मैं.… किसी जहाँ मे…… (स्वरचित)   dj    कॉपीराईट  © 1999 – 2015 Google इस ब्लॉग के अंतर्गत लिखित/प्रकाशित सभी सामग्रियों के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं। किसी भी लेख/कविता को कहीं और प्रयोग करने के लिए लेखक की अनुमति आवश्यक है। आप लेखक के नाम का प्रयोग किये बिना इसे कहीं भी प्रकाशित नहीं कर सकते।   dj    कॉपीराईट  © 1999 – 2015 Google मेरे द्व

क्या मैं भी हुनरमंद हूँ ?

रोज कुछ नया लिखती हूँ, रोज कुछ नया गढ़ती हूँ, बस लिख लेती हूँ, इसलिए ही आजकल खुश दिखती हूँ। वो उदासी वो निराशा, अब गायब सी हो गई है, लेखन से मन में, राहत सी हो गई है। लिखना तो बस अब , एक आदत सी हो गई  है। शायद इसीलिए, आजकल, ये कलम भी साथ देती है, मेरे मन की तुरंत ही, कागज़ पे उतार देती है। और मुझ पर लदा हर बोझ , एक पल में ये हर लेती है। कुछ नया करके मन ही मन प्रसन्न हूँ। ये सब कैसे हो रहा है, सोचकर मै खुद भी दंग हूँ। ये कागज़ कलम मुझे, और इन्हें मैं पसंद हूँ। आजकल लगने लगा है कि, मैं भी एक हुनरमंद हूँ। (स्वरचित)   dj    कॉपीराईट  © 1999 – 2015 Google इस ब्लॉग के अंतर्गत लिखित/प्रकाशित सभी सामग्रियों के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं। किसी भी लेख/कविता को कहीं और प्रयोग करने के लिए लेखक की अनुमति आवश्यक है। आप लेखक के नाम का प्रयोग किये बिना इसे कहीं भी प्रकाशित नहीं कर सकते।   dj    कॉपीराईट  © 1999 – 2015 Google मेरे द्वारा इस ब्लॉग पर लिखित/प्रकाशित सभी सामग्री मेरी कल्पना पर आधारित है। आसपास के वातावरण और घटनाओं से प्रेरणा लेकर लिखी गई हैं। इनका किसी अन्य से

मेरा सुकून (कविता)

मुझे ये माहौल पसंद नहीं  ये चैं -चैं  पैं-पैं,ये शोरगुल, ये जोर-जोर से चिल्लाना , ये गाड़ी के हॉर्न को, पीं -पीं करके, देर तक जोर से बजाना, मुझे तो पसंद है बस, शांति में, कागज़ कलम लेकर बैठ जाना, सुबह सुबह, उन दो चिड़ियों का, यूँ प्यार से चहचहाना। दिमाग में विचार, और मुँह में चाय की चुस्की लेकर, चंद शब्दों को, कविता की माला में पिरो जाना। (स्वरचित)   dj    कॉपीराईट  © 1999 – 2015 Google इस ब्लॉग के अंतर्गत लिखित/प्रकाशित सभी सामग्रियों के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं। किसी भी लेख/कविता को कहीं और प्रयोग करने के लिए लेखक की अनुमति आवश्यक है। आप लेखक के नाम का प्रयोग किये बिना इसे कहीं भी प्रकाशित नहीं कर सकते।   dj    कॉपीराईट  © 1999 – 2015 Google मेरे द्वारा इस ब्लॉग पर लिखित/प्रकाशित सभी सामग्री मेरी कल्पना पर आधारित है। आसपास के वातावरण और घटनाओं से प्रेरणा लेकर लिखी गई हैं। इनका किसी अन्य से साम्य एक संयोग मात्र ही हो सकता है। आपकी पसंद क्या है ? चहल-पहल या शांति ?निःसंकोच लिख दीजिए।और इन पंक्तियों के बारे में अपने विचार व्यक्त करना मत भूलियेगा।  और इसे भी देख